Sanjay Modi : दोस्तों, जिंदगी में हर किसी का सपना होता है कुछ अलग करने का, कुछ ऐसा करने का जिससे उसका नाम बने और समाज में पहचान बने। लेकिन अक्सर हालात और परिवार की उम्मीदें उस सपने के रास्ते में खड़ी हो जाती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ राजस्थान के सांचोर के रहने वाले Sanjay Modi के साथ। Sanjay Modi का सपना था बिजनेस करना, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि बेटा या तो डॉक्टर बने या फिर गांव में खेती करे। पर संजय के दिल में कुछ और ही था – अपना स्टार्टअप बनाने का।
A dream born during the 12th grade holidays
यह बात उस समय की है जब Sanjay Modi 12वीं कक्षा में थे। गर्मियों की छुट्टियां चल रही थीं। उनकी छोटी बहन हर्षिता को नई कक्षा का सिलेबस चाहिए था। संजय किताबें खरीदने के लिए बाजार गए, लेकिन उन्होंने देखा कि किताबों के दाम बहुत ज्यादा हैं। उस दिन उन्होंने बहन के लिए किताबें तो ले लीं, लेकिन उनके मन में एक सवाल बैठ गया – “क्या कोई ऐसा तरीका नहीं हो सकता जिससे किताबें कम दामों में मिलें और हर वो बच्चा, जो पढ़ना चाहता है, किताबें खरीद सके?”
यहीं से उनके दिमाग में एक स्टार्टअप आइडिया का बीज पड़ा।
Papa’s test and starting with the broom
Sanjay Modi ने हिम्मत जुटाकर पापा से कहा – “पापा, मुझे अपना बिजनेस करना है।”
पापा को यह मजाक लगा। उन्होंने सोचा कि बच्चा समझ नहीं रहा है। इसलिए छुट्टियों में उन्हें एक शोरूम पर काम करने भेज दिया ताकि उन्हें पता चले कि बिजनेस करना कितना मुश्किल है। वहां संजय का काम था झाड़ू लगाना, शीशे साफ करना और कपड़े जमाना। लेकिन Sanjay Modi ने इसे अपनी बेइज्जती नहीं समझा, बल्कि इसे अपनी सीखने की शुरुआत बना लिया।
Journey from helper to manager
सिर्फ 15 दिनों में किस्मत ने करवट ली। शोरूम में आने वाले एक बड़े मालिक को डिजिटल मार्केटिंग मैनेजर की जरूरत थी। Sanjay Modi ने हिम्मत की और कहा – “मैं कर लूंगा।”
और हुआ भी वही – वह झाड़ू लगाने वाले लड़के से सिर्फ 15 दिनों में कंपनी का सोशल मीडिया मैनेजर बन गए।
The Birth of NearBook
कुछ महीनों के बाद Sanjay Modi ने नौकरी छोड़ दी और अपना पूरा ध्यान अपने स्टार्टअप NearBook पर लगाया।
आईडिया था – पुराने और इस्तेमाल की हुई किताबों को लोगों तक पहुंचाना ताकि बच्चे, छात्र और जरूरतमंद कम दामों में किताबें ले सकें। लेकिन दिक्कत यह थी कि न पैसा था, न परिवार का सपोर्ट। सिर्फ जिद और जुनून था।
रिजेक्शन, स्ट्रगल और हार न मानने की जिद
Sanjay Modi ने बहुत से इन्वेस्टर्स और वेंचर कैपिटलिस्ट से मुलाकात की। सबने यही कहा –
“आईडिया अच्छा है, लेकिन चलेगा नहीं।” “तुम बहुत छोटे हो।” “बुक इंडस्ट्री खत्म हो रही है।”
लेकिन Sanjay Modi ने हार नहीं मानी। दिन-रात मेहनत करते रहे और अपने कॉ-फाउंडर को भी ढूंढ निकाला। दोनों ने मिलकर NearBook का MVP लॉन्च किया और धीरे-धीरे लाखों लोग जुड़ने लगे।
The hardest period: running out of money
जैसे ही प्लेटफॉर्म चलने लगा, सबसे बड़ी समस्या सामने आई – सर्वर खर्चा।
AWS सर्वर का खर्चा 80,000 रुपए तक पहुंच गया था। Sanjay Modi के पास पैसे नहीं थे। कई बार मन में आया सब छोड़ दें। लेकिन फिर वही सपना, वही जिद – “मुझे करना है” – उन्हें आगे बढ़ाती रही।
Journey to Shark Tank
2024 में Sanjay Modi ने शार्क टैंक इंडिया में अप्लाई किया और किस्मत से उनका चयन हो गया।
वहां लाखों लोगों के सामने, पांचों शार्क्स के सामने उन्होंने अपनी पिच रखी। शुरुआत में सभी शार्क्स ने इंकार कर दिया, लेकिन अंत में अनुपम मित्तल वापस आए और 40 लाख की डील दे दी। उन्होंने तुरंत पापा को फोन किया – “पापा, अनुपम सर ने डील दे दी।”पापा को यकीन नहीं हुआ। जब उन्होंने चेक की फोटो देखी, तब खुशी के आंसू उनकी आंखों में थे।
Deal cancelled and a fresh start
लेकिन किस्मत फिर खेली। ड्यू डिलीजेंस के बाद डील कैंसिल हो गई।
Sanjay Modi के लिए यह बहुत बड़ा झटका था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। फिर से जीरो से शुरुआत की और बिना किसी फंडिंग के NearBook को Bootstrap किया।

Today’s NearBook
आज Sanjay Modi का NearBook भारत की सबसे तेज़ी से बढ़ती Used Books Marketplace है।
- 20 लाख से ज्यादा पुरानी किताबें उपलब्ध हैं।
- 1.6 मिलियन+ डाउनलोड्स हो चुके हैं।
- ब्रेक-ईवन पॉइंट तक पहुंच चुका है और जल्द ही प्रॉफिटेबल होने वाला है।
यह सब सिर्फ Sanjay Modi की मेहनत, जिद और यूजर्स के प्यार की वजह से संभव हुआ है।
Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारी और सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारियों की पूरी तरह से सटीकता की गारंटी नहीं है। किसी भी तथ्यात्मक गलती के लिए लेखक या प्रकाशक जिम्मेदार नहीं होंगे।
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