सरदार Bhagat Singh महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्रांतिकारी थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी ब्रिटिश साम्राज्य के द्वारा लोगों पर हो रहे जुल्म अत्याचार के खिलाफ संघर्ष की और भारत को आजाद करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और भारतीय युवाओं के दिलों में आजादी की एक नई सोच पैदा की भारतीय युवाओं के दिलों में क्रांति की लहर पैदा की जिसका परिणाम आज आपके सामने हैं कि हम सब आजाद हैं इन्होंने अपने जीवन में भारत को आजाद कराने के लिए हर प्रयास किया और और भारत को आजादी दिलाने की हर लड़ाई में शामिल हुए इन्होंने महेश 12 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम के हर प्रोग्राम और लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था भारत को आजाद करने में इनका जो योगदान रहा वह किसी भी ऐसे क्रांतिकारी से कम नहीं रहा 23 साल की उम्र में इन्हें अंग्रेजों द्वारा फांसी दे दी गई भारतीय क्रांतिकारी में एक ऐसे क्रांतिकारी थे जो सबसे कम उम्र में फांसी के फंदे पर हंसी-हंसी चढ़ गए क्योंकि इन्हें भारत को आजाद देखना था सरकार भगत सिंह के फांसी के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुत ही तेजी देखने को मिली और लोग अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई मैं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे लोगों के दिलों में इनकी शहादत को देखते हुए एक ऐसी लहर जागी ऐसा गुस्सा फूटा कि आखिरकार भारत आजाद हुआ उनकी बहादुरी बलिदान और कुशलता के कारण उन्हें भारतीय इतिहास में अमर बना दिया आज भी इनको लोग एक शाहिद और प्रेरणा स्रोत के रूप में याद किया करते हैं इनके सहादत और बलिदान के कारण लोग ने इन्हें सहीदे आजम का ख़िताब दिया है आईए जानते हैं इनकी संघर्ष की कहानी को कि इनके दिल में इतनी छोटी सी उम्र में आजादी की ऐसी सोच कैसे और कब आई इन्होंने कब और कैसे आजादी की लड़ाई लड़ने की शुरुआत की और फिर कैसे इनको फांसी दे दी गई
Table of Contents
Bhagat Singh wiki/bio
Attribute | Details |
---|---|
Name | Sardar Bhagat Singh |
Real Name | Bhagat Singh |
Age | 23 years (at the time of death in 1931) |
Died | 23 March 1931 (aged 23) Lahore Central Jail |
Date of Birth | 27 September 1907 |
Height | Not applicable (historical figure) |
Weight | Not applicable (historical figure) |
Profession | Revolutionary, Freedom Fighter |
Home Town | Banga, Punjab, British India (now in Pakistan) |
Birthplace | Banga, Punjab, British India (now in Pakistan) |
Religion | Sikhism |
Caste | Jat (Sikh) |
School | Dayanand Anglo-Vedic School |
Education | Not applicable (historical figure) |
College | National College, Lahore |
Famous For | Revolutionary activities against British rule, including the killing of John Saunders and the bombing of the Central Legislative Assembly |
Hobbies | Nationalist activities, Reading |
Marital Status | Not married (historical figure) |
Bhagat Singh Story
भगत सिंह का जन्म 27 अक्टूबर 1907 को रायपुर जिले के बंगा गांव में एक सिख परिवार में हुआ था यह गांव अभी के समय में पाकिस्तान में है इनका परिवार शुरुआत से ही आजादी के आंदोलन से जुड़ा हुआ था उनके परिवार में इनके पापा चाचा सब आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे
Bhagat Singh Eduaction
इन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई बंगा गांव के स्कूल से ही किया फिर उन्होंने लाहौर के दयानंद एग्रो वैदिक स्कूल में अपना दाखिला करवाया वहां से इन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई कंप्लीट की और फिर इसके बाद पढ़ने के लिए 1923 में अपने आगे की पढ़ाई करने के लिए लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित कॉलेज में अपना दाखिला करवाया यह महात्मा गांधी के असहमति आंदोलन के जवाब में 2 साल पहले स्थापित किया गया था [ref]
Bhagat Singh Early life
जब यह पैदा हुए थे तब उनके चाचा अजीत सिंह प्रगतिशील आंदोलनकारी थे नर उपनिवेशी विधायक के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे 1907 में बाद में उनके चाचा 1914 से लेकर 1915 के गदर आंदोलन में भी शामिल हुए थे भगत सिंह पर उनके घर के माहौल की वजह से काफी असर पड़ा यह बहुत ही कम उम्र से अंग्रेजों से घृणा करते थे 13 अप्रैल 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह को बहुत ही ठेस पहुंचाई और यही से उनकी जीवन की बदलाव की शुरुआत हुई यह उस कांड से इतने क्रूर हो गए थे की बताना मुश्किल है अंग्रेजों से घृणा [ref]
Bhagat Singh Patriotism(देशप्रेम)
यहीं से उनके मन में भारत को आजाद करने की और एक क्रांतिकारी बनने की ललक देखने लगी यही कारण था कि इन्होंने अपने जीवन में अहिंसा के बजाय हिंसा को चीन और ईंट का जवाब पत्थर से से देने की सोची इस समय पर उनकी उम्र मात्र 12 साल की थी आप सोच सकते हैं कि 12 साल की उम्र में ही इनके मन में भारत के प्रति इतना प्यार और भारत को आजाद करने के लिए अपना सब कुछ लगाने के लिए तैयार थे
इसी बीच वह गांधी जी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन का भी हिस्सा बन गए और जहां भी आजादी के लिए किसी भी प्रकार का कोई आंदोलन होता वह उसमें शामिल हो जाते फिर बाद में गांधी जी के असहयोग आंदोलन को वापस लेने से उनके दिल में काफी गहरा असर पड़ा और यह फिर अलग-अलग रास्ते ढूंढने लगे आजादी के लिए इन्होंने अलग-अलग संगठनों में काम किया अलग-अलग संगठनों से जुड़े इसी बीच इन्होंने चंद्रशेखर आजाद से मिले और उनके संगठन में शामिल हो गए
इसके बाद इन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर आंदोलन शुरू कर दी और 9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली एक सरकारी गाड़ी से सरकारी खजाना लूट लिया इस घटना से इनका नाम काफी प्रसिद्ध हुआ इस घटना को अंजाम देने वाले भगत सिंह राम प्रसाद बिस्मिल चंद्रशेखर आजाद और भी प्रमुख क्रांतिकारी ने साथ मिलकर इन अंजाम को दिया
फिर इसके बाद इन्हें साल 1927 में गिरफ्तार कर लिया गया 1926 में लाहौर में हुई बमबारी के मामले में इस गिरफ्तारी में इन्हें मात्र 5 सप्ताह बाद ₹6000 की जमानत पर रिहा किया गया और फिर यह इसके बाद अमृतसर में प्रकाशित उर्दू और पंजाबी समाचार पत्रों के लिए लिखना शुरू किया इन समाचारों में इन्होंने युवाओं और आंदोलन कार्यों को बहुत ही क्लियर मैसेज दिया युवाओं के दिलों में देश प्रेम को जगाया और आंदोलन के कार्यों में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहन करने लगा अपने लिखाई के जरिए []
Bhagat Singh Reading of books
भगत सिंह को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था जब भी समय मिलता था वह किताब में पढ़ते थे उन्होंने अक्टूबर क्रांति लेनिन के बारे में काफी कुछ पद उनसे काफी प्रभावित हुआ कई मां को पर उन्होंने राष्ट्रवाद अराजकता अहिंसा आतंकवाद धर्म धार्मिकता और संप्रदायवाद की आलोचना की इन सरी चीजों को इतिहास के मुताबिक अध्ययन करने पर इस नतीजे पर पहुंचे की एक क्रांतिकारी के लिए जरूरी है उसके खिलाफ आवाज उठाना अपने संघर्ष के खिलाफ बोलना और अपने मन में एक क्रांतिकारी विचारधारा पैदा करना [ref]
Bhagat Singh Killing of John Saunders
साल 1927 में साइमन कमीशन मुंबई पहुंचा और पूरे देश में साइमन कमीशन का विरोध हुआ 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुंचा लाला लाजपत राय की देखरेख में एक जुलूस का आयोजन किया गया कमीशन के विरोध में शांतिपूर्ण तरीके से लेकिन देखते ही देखते बहुत ज्यादा भीड़ इकट्ठा हो गई विरोध देखने के बाद सहायक अधीक्षक साण्डर्स ने प्रदर्शनकारियों लाठी चलाने का आदेश दिया इसी लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय बुरी तरीके से घायल हो गए और 17 नवंबर 1928 को लाला लाजपत राय का देहांत हो गया लाला लाजपत राय के देहांत के बारे में डॉक्टर ने बताया की ज्यादा मार लगने के कारण इनका हार्ट अटैक से मौत हुआ है
लाला लाजपत राय की मौत के बाद भगत सिंह को बहुत ही अफसोस हुआ क्योंकि भगत सिंह लाला लाजपत राय के बहुत ही करीब थे फिर क्या था लाला लाजपत राय का मृत्यु का बदला लेने की थान ली लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ने भगत सिंह राजगुरु सुखदेव और चंद्रशेखर आजाद और जय गोपाल सिंह को यह काम सोपा
प्लान के मुताबिक 17 दिसंबर 1928 को करीब 4:15 बजे एसपी सैंडर्स के आते ही राजगुरु ने एक गोली सीधे उसके सर पर मारी जिस के कारण वह तुरंत बेहोश हो गए इसके तुरंत बाद भगत सिंह ने तीन चार गोली दाग कर उसे पूरी तरीके से खत्म कर दिया यह दोनों जैसे ही गोली मारकर भागने लगे तो एक सिपाही चरण सिंह ने इनका पीछा करना शुरू कर दिया चंद्रशेखर आजाद ने उसे वार्निंग दी कि अगर वह हमारे पीछे आए तो उसे गोली मार दूंगा नहीं मानने पर उन्हें भी गोली मार दी
क्रांतिकारियों ने सांडर्स को मारकर क्रांतिकारियों का मौत का बदला लिया इनके हत्या ने भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को पूरे देश में एक क्रांतिकारी की पहचान दिलाई और देश के कोने-कोने में उनके नाम गूंजने लगे इस घटना से अंग्रेजी सरकार पूरी तरीके से डर गई और इन चारों को ढूंढने लगे इस घटना के वजह से भगत सिंह को अपने सर के बल और दाढ़ी काटनी पड़ी थी क्योंकि अंग्रेजी सरकार इन्हें जोरों शोर से ढूंढ रही थी इसके बाद इन्होंने देश के अलग-अलग जगह पर गए और वहां पर के क्रांतिकारियों से मिले और उनके साथ मिलकर काम किया अलग-अलग जगह पर साथ ही साथ सारी क्रांतिकारियों के दिल में क्रांति की एक अलग पैदा की [ref]
जब Bhagat Singh ने बम फेंका बम
और फिर उन दिनों अंग्रेजी सरकार ने पब्लिक सेफ्टी बिल लाने की तैयारी कर रही थी यह कानून इतना ही खतरनाक था जीस से क्रांतिकारियों को दबाया जा सके यानी जो भी क्रांतिकारी पैदा हो उसे पैदा होने से पहले ही समाप्त कर दिया जाए यह कानून पास करने में अंग्रेजी सरकार पूरी तरीके से अपना फैसला बना चुकी थी लेकिन यह कानून चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को हरगिज मंजूर रही थी इनके खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए और अंग्रेजी सरकार के मनसूबे को नाकाम करने के लिए 8 अप्रैल 1929 को जिस दिन बिल की घोषणा की गई उसी समय पर भगत सिंह ने संसद भवन में बम फेंक दिया इन्होंने नारा लगाया इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद का नाश हो यह बम फेंकने के बाद वहां से चाहते तो भाग सकते थे लेकिन वहां रुक कर पूरा जोर का विरोध प्रदर्शन किया और वहीं पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया
और फिर उसके बाद राजगुरु को पुणे से और सुखदेव को लाहौर से गिरफ्तार कर लिया गया और उनके खिलाफ लाहौर में मुकदमा चला 7 अक्टूबर 1930 को जिसमें से भगत सिंह सुखदेव राजगुरु को मौत की सजा सुनाई गई इनको मौत की सजा सुनने के बाद चारों तरफ प्रदर्शन और बढ़ गया लोग उग्र होने लगे हर जगह से अंग्रेजी सरकार का विरोध होना शुरू हो चुका था. इन्हें सजा सुनाने के बाद बहुत लोगों ने इनकी सजा के लिए अंग्रेजी सरकार से विनती की लेकिन सरकार ने पहले ही मन बना चुका था कि अगर यह जिंदा रह गए तो हमें जिंदा रहने नहीं देंगे, इन्होंने जेल में रहने के दौरान भी जेल में हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाया जेल में इंडियन कैदी को घटिया और खराब खाना खिलाया जाता था और अंग्रेजी कैदियों के लिए अलग से खाना बनता था इन्होंने इस बात का मुद्दा उठाया और आखिरकार अंग्रेजी सरकार को इस बात को माननी पड़ी [ref]
Bhagat Singh को 23 मार्च 1931 को दे दी फांसी
24 मार्च 1931 को इनकी मौत का दिन मुकर्रर किया गया था लेकिन हो रहे प्रदर्शन को देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने डर से एक दिन पहले ही 23 मार्च 1931 को करीब 7:33 के शाम शाम को भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई जब इन्हें फांसी पर ले जाने से पहले उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो यह उस समय लेनिन की जीवनी पर रहे थे और उन्होंने मोहलत मांगी कि उनकी जीवनी के आखिरी कुछ पन्ने बच्चे हैं उन्हें पढ़ने दिया जाए फिर उन्हें पढ़ने का समय दिया गया और फिर उन्होंने पूरी जीवनी पड़ी और फिर जब फांसी के लिए ले जाने लगे तो सभी क्रांतिकारियों ने आपस में गले मिले और उछाल कर बोले ठीक है अब चलो और मेरा रंग दे बसंती चोला मेरा रंग दे बसंती चोला गाना गाते हुए तीनों क्रांतिकारियों ने फांसी के फंदे को चूमने लगे
और 23 साल की उम्र में अपने देश के लिए कुर्बान हो गए भगत सिंह के फांसी के बाद लोगों ने काफी विरोध प्रदर्शन किया जगह से प्रदर्शनकारी देखने को मिले इनकी कुर्बानी का ही नतीजा है जो आज हम आजाद हैं अगर यह कुर्बानी न दिए होते तो आज हम आजाद नहीं होते [ref]
ऐसी बहुत सी कारनामे हैं जो भगत सिंह ने अपने देश के लिए किए हैं जिन्हें यहां बताना संभव तो नहीं अगर आप उनकी पूरी जीवनी पढ़ना चाहते हैं तो उनकी लिखी हुई किताब जेल की डायरी को पढ़ें जिसे पढ़ने के बाद आपकी सोच में बहुत बदलाव देखने को मिलेगा और आप दिल से महसूस करेंगे की भगत सिंह ने जो देश के लिए किया वह कोई दूसरा नहीं कर सकता है
Bhagat Singh Family
उनके परिवार में उनके माता-पिता उनके पांच भाई और 3 महीने थी इनके पिता भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे
Father’s Name:-Kishan Singh,
Mother’s Name:-Vidyavati
शहीद Bhagat Singh की बातें जो इतिहास में दर्ज है
भगत सिंह ने एक बहुत ही प्यारा नारा दिया इंकलाब जिंदाबाद जो बाद में भारत का संघर्ष का नारा बना
जब उनकी मां आखिरी बार उनसे जेल में मिलने आई थी तो यह हंस रहे थे सब इस बात से हैरान थे की कुछ दिनों में ही फांसी चढ़ने वाले हैं लेकिन मौत का खाओ बिल्कुल नहीं उनके चेहरे पर
भगत सिंह ने जेल में 116 दिन का उपवास रखा था अपने क्रांतिकारी और इंडियन कैदियों के लिए जिन्हें बराबर का हक नहीं मिल रहा था
Bhagat Singh जेल डायरी किताब ( Hindi )
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