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Balaji Wafers Success Story : साइकल से लेकर 5000 करोड़ के एम्पायर तक की प्रेरणादायक कहानी

क्या आपने कभी सोचा है कि आपके सामने बिक रही पैक्ड चिप्स की छोटी सी थैली के पीछे कितनी मेहनत और संघर्ष छिपा होता है? Balaji Wafers की कहानी एक ऐसे लड़के की है जिसने बचपन में साइकल पर अपने हाथ से बनाई चिप्स बेचकर अपनी जिंदगी की शुरुआत की थी और आज यह भारत का सबसे बड़ा वेफर्स और स्नैक्स ब्रांड बन चुका है।

A beginning full of struggles and difficulties

1957 में गुजरात के छोटे से गांव Dhundh Doraji में Chandu Bhai Virani का जन्म हुआ। उनका परिवार बेहद साधारण था और गांव में बिजली तक नहीं थी। खेती पर निर्भर यह परिवार 1972 के भयानक सूखे से पूरी तरह बर्बाद हो गया। उनके पिता को अपनी पुश्तैनी जमीन ₹2000 में बेचनी पड़ी और पैसे तीन बेटों में बांट दिए गए। 17 साल की उम्र में Chandu Bhai अपने भाइयों के साथ Rajkot चले गए। उनका पहला प्लान था फर्टिलाइज़र का छोटा व्यवसाय शुरू करना, लेकिन सप्लायर के धोखे की वजह से उनका निवेश डूब गया और वे पूरी तरह सड़क पर आ गए।

A period of hard work and learning

Rajkot में उन्होंने हर मुमकिन काम किया। Astron Cinema में ₹90 महीने की नौकरी से शुरू होकर, उन्होंने पिक्चर पोस्टर लगाने, टिकट चेक करने, क्लीनिंग और फटी सीट्स रिपेयर करने तक सब काम किया। उनके काम से सिनेमा के मालिक इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें कैंटीन का कॉन्ट्रैक्ट दिया। कैंटीन में उन्होंने देखा कि सबसे ज्यादा बिक्री पोटैटो वेफर्स की हो रही थी। लेकिन सप्लायर्स की वजह से कभी-कभी स्टॉक कम या लेट हो जाता था। यही समस्या उन्हें 1982 में अपने खुद के पोटैटो वेफर्स बनाने के लिए प्रेरित किया।

Launch of Balaji Wafers

Chandu Bhai ने अपने घर के कंपाउंड में ₹10,000 में छोटा शेड बनवाया और जुगाड़ से ₹5000 में पोटैटो पीलिंग और कटिंग मशीन तैयार की। बाकी पैसे कढ़ाई और उपकरणों पर खर्च हुए। शुरू में वे कैंटीन में ही वेफर्स बेचते थे और धीरे-धीरे Rajkot के 25-30 दुकानदारों तक अपनी पहुंच बनाई। क्वालिटी की समस्याओं को समझकर Chandu Bhai खुद पोटैटो वेफर्स उत्पादन में विशेषज्ञ बन गए। उन्होंने पोटैटो की ड्राई मैटर, स्लाइस की मोटाई, तेल का तापमान, फ्राई करने का समय और मसालों का अनुपात पूरी तरह मास्टर किया।

Investment in production and technology

1980 और 1990 के दशक में Balaji Wafers ने लगातार उत्पादन क्षमता बढ़ाई। 1995 में पहला सेमी ऑटोमेटिक प्लांट, 2002 में फुल्ली ऑटोमेटेड फैक्ट्री और 25,000 टन की कोल्ड स्टोरेज के साथ उन्होंने क्वालिटी, पैकेजिंग और सप्लाई चैन को मजबूत किया।

Revolution in Marketing and Branding

Balaji Wafers ने अपने प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग में जीनियस स्ट्रेटेजी अपनाई। Lays की सबसे बड़ी कमजोरी, यानी कम क्वांटिटी, को मज़ाकिया और हल्के अंदाज में अपने एड्स और सोशल मीडिया में प्रमोट किया। उनके स्लोगन “हवा कम, वेफर ज्यादा, फ्लेवर्स वाहवा” ने ग्राहकों का ध्यान खींचा। इसके अलावा उन्होंने नए प्रोडक्ट्स लॉन्च करने से पहले छोटे समूहों में टेस्टिंग कर फीडबैक लिया और उसी के अनुसार अपने प्रोडक्ट्स सुधारते गए। Balaji Wafers ने न केवल वेफर्स बल्कि नमकीन, स्नैक्स और नूडल्स तक अपनी रेंज बढ़ाई।

Human-Centered HR and Business Values

Balaji Wafers का HR मॉडल भी बिल्कुल यूनिक है। कर्मचारियों को टारगेट नहीं दिए जाते। हर कर्मचारी को मालिकाना फीलिंग होती है और उनका व्यक्तिगत नंबर सीधे Chandu Bhai के पास होता है। हायरिंग में पैशन और एटीट्यूड को महत्व दिया जाता है।

Balaji Wafers today

आज Balaji Wafers भारत के लाखों दुकानों में उपलब्ध हैं और 25 से ज्यादा देशों में निर्यात किए जाते हैं। यह ब्रांड सालाना ₹5000 करोड़ का रेवेन्यू करता है। सबसे प्रेरणादायक बात यह है कि इस पूरे एम्पायर की शुरुआत उस छोटे से लड़के ने की थी, जो कभी साइकल पर घूमकर चिप्स बेचता था।

डिस्क्लेमर: यह आर्टिकल पूरी तरह से जानकारी और प्रेरणा के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई तथ्य और विवरण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध स्रोतों पर आधारित हैं।

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  • bablu

    मैं बबलू , 24 वर्षीय, भारतीय जनसंचार संस्थान से जनसंचार और पत्रकारिता में स्नातक हूँ। मुझे सफल और कामयाब लोगों के बारे मैं लिखना पसन्द है। kamyabstory.in पर, जो अपनी जिंदगी मैं सफल या कामयाब हो चुके है उनके बारे मैं लिखता हूँ। अपनी रुचि और विशेषज्ञता के साथ पाठकों के लिए नवीनतम जानकारी लाता हूँ।

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